Principle's Message

Dr. Ashok Patahk

Principle

अररिया महाविद्यालय, अररिया एक संक्षिप्त ऐतिहासिक सर्वेक्षण किसी भी राष्ट्र या देश की जातीय संस्कृति जितनी महान होती है, उतना ही वह गौरवशाली होता है। ठीक उसी प्रकार किसी विश्वविद्यालय का सांस्कृतिक और रचनात्मक पक्ष जितना मजबूत होता है, उसकी ख्याति भी उतनी ही अमर होता है। नालन्दा विश्वविद्यालय हो या पाटलिपुत्र आज भी शिक्षा जगत में उसका परचम लहराता है। विश्वविद्यालय महाविद्यालय की नींव पर खड़ा होता है, महाविद्यालय की टीढ़ होते हैं, उनके आचार्य और उनकी व्यवस्था आचार्यों की आत्मा होती है, उनकी शैक्षिक उज्जवलता। इस उज्जवलता के रचनात्मक उन्नायक होते हैं - गुर। गुरु के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गरिमा से सुन्दर भविष्य का निर्माण होता है। अटरिया महाविद्यालय अटरिया की स्थापना 3 जुलाई 1973 ई0 में यहाँ के कुछ बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, राजनीतिज्ञों और प्रशासकीय अधिकारियों के कुशल नेतृत्व में हुआ, तब से आज तक इस क्षेत्र के सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक उन्नयन में महाविद्यालय की भूमिका को लोगो ने सराहा है। क्योकि प्रकृति ने मानव को ही ज्ञान एवं समझ दी है, और इसके लिए इसका मंदिर अति आवश्यक है। तत्कालीन अनुमण्डल मुख्यालय में एक भी कॉलेज नहीं रहने से उच्चतर शिक्षा के लिए यहाँ के छात्र-छात्राओं को दूर जाना पड़ता था। पिछड़ा और गरीब इलाका होने के कारण अर्थाभाव से जूते अनेकानेक मेधावी छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते थे । खासकर छात्राओं को तो प्रत्यक्ष परिणाम भुगतना पड़ता था । अररिया महाविद्यालय की स्थापना से क्षेत्र में उच्च शिक्षा के दीप जले और तत्कालीन ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय वर्तमान में पूर्णियां विश्वविद्यालय की अंगीभूत इकाई के रूप में यह महाविद्यालय शिक्षा की जोत जगा रहा है। अररिया महाविद्यालय, अररिया, पूर्णिया विश्वविद्यालय की एक ऐसी इकाई है जो सतत् विकासशील, प्रगतिमान, सामाजिक एवं राष्ट्रीय गौरव के प्रति प्रतिबद्ध है। यहाँ सह-शिक्षा की व्यवस्था है, जो एक पिछड़े क्षेत्र की स्वयं में उपमा है। छात्र-छात्राओं का प्रेम, शिक्षक- शिक्षकेत्तर कर्मचारियों का आचरण यहाँ पारिवारिक परिवेश में फलता-फूलता रहा है। जातीय मृदुता (राष्ट्रीय एकता ) इस महाविद्यालय की प्रामाणिक उपलब्धि है। लगन, शील और संस्कार महाविद्यालय के सवर्द्धन म अभूतपूर्व भूमिका निभाया। महाविद्यालय परिवार स्व रामतवक्या शर्मा का आज भी ऋणी है, जिन्होंने जगह-जगह राशि उगाही में लांछन की भी परवाह न की इस यज्ञ में राशि उगाही के लिए जाते समय शिक्षक पूरी ईमानदारी, निष्ठा और लग्न के साथ तन-मन-धन के साथ जुड़े रहे। फिर तो धीरे-धीरे छात्रों का विश्वास बढ़ता ही गया। पढ़ाई से विद्यार्थी जुड़ते चले गये और महाविद्यालय का विकास क्रम चलता रहा है। इधर महाविद्यालय के सामने अपनी भूमि और भवन की समस्या उत्पन्न हुई। माननीय स्व० तसलीम उद्दीन, पूर्व गृह राज्यमंत्री, भारत सरकार सह पूर्व भवन निर्माण मंत्री, बिहार सरकार तत्कालीन प्रशासिका समिति के प्रथम संस्थापक सचिव हुए। इन्होंने जून 1976 में महाविद्यालय की बागडोर संभाली। अररिया महाविद्यालय के खाते में दाताओं की कमी रही। एकमात्र दाता रतन लाल गोयल हुए। इन सबों के सहयोग से रियायती दर पर अररिया और आर. एस. की बीच तोला राम बाठिया से 15 एकड़ जमीन खरीदी गयी। फिर भी महाविद्यालय के सामने अपने भवन की समस्या मुँह बाये खड़ी थी। माननीय तसलीम उद्दीन साहब ने तब एक 'कव्वाली का आयोजन द्वारा राशि उगाही का बीड़ा उठाया। 'कव्वाली का आयोजन हुआ। अररिया की जनता का सहयोग प्राप्त हुआ। अंततः उस राशि से महाविद्यालय का अपना एक भवन निर्माण हुआ, जहाँ 1976 में अटरिया उच्च विद्यालय से स्थानान्तरित होकर महाविद्यालय अपनी भूमि और भवन पर सदा के लिए खड़ा हो गया। इस मध्य लगातार महाविद्यालय प्रशासन द्वारा संबंधन के लिए प्रयास चलता रहा और डिग्री स्तर तक पढ़ाई का संबंधन प्राप्त होता रहा। छात्र-छात्राओं का उज्जवल भविष्य लिखा जाने लगा। तत्पश्चात् सितम्बर 1977 से जून 1980 तक माननीय पूर्व विधायक स्व0 श्रीदेव झा महाविद्यालय के सचिव रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में महाविद्यालय को एक व्यवस्था और रूप देने में अग्रणी भूमिका निभायी। कई और कर्मचारियों की नियुक्ति हुई । महाविद्यालय को आवश्यकतानुसार पद सृजन की समस्या थी। विदित है कि आज के युग में स्वतः प्रक्रियानुसार सरकारी दफ्तरों में रचनात्मक कार्यों की परम्परा प्रायः समाप्त हो चुकी है। 'पद सृजन' की दिशा में सरकारी स्तर तक श्रीदेव झा जी ने अच्छी सफलता प्राप्त की। इतना ही नहीं तीनों संकायों में डिग्री स्तर तक प्रतिष्ठा की पढ़ाई संबंधन भी राज्य सरकर से प्राप्त किया। कॉलेज में क्षेत्रीय लोगों की नियुक्ति को प्राथमिकता दी गयी। विश्वविद्यालय आयोग से अनुशंसा, नियुक्ति की प्रक्रिया आदि को स्वरूप प्रदान किया गया। परिवर्तन के तौर पर जुलाई 1980 से मार्च 1981 तक माननीय मो० यासीन, पूर्व विधायक, महाविद्यालय के सचिव हुए। जिनकी सक्रिय भूमिका से महाविद्यालय का अंगीभूतिकरण राज्य सरकार द्वारा ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की इकाई के के साथ अध्यवसाय तथा अध्ययन इस महाविद्यालय के छात्र- छात्राओं की विशिष्टता रही है। प्रशासन, कला, साहित्य, संगीत, चिकित्सा, अभियंत्रण आदि क्षेत्रों में इनका कीर्तिमान द्रष्टव्य रहा है। एन. एस. एस. तथा खेलकूद जैसे क्रियाकलाप महाविद्यालय के जीवन को क्रियाशील करते रहे हैं। छात्र-छात्राएँ इस महाविद्यालय की सबसे बड़ी संपदा हैं। इनकी मेधा का कोर्तिमान सदैव इनको रेखांकित करता रहा है। गत वर्ष भी क्रीड़ा प्रतियोगिता में इस महाविद्यालय के छात्रों ने उपलब्धि हासिल की है। यहाँ कला, विज्ञान और वाणिज्य तीनों संकायों में स्नातक प्रतिष्ठा स्तर तक के साथ स्नातकोत्तर विषयों की भी पढ़ाई होती है। कला संकाय में भूगोल, समाज शास्त्र एवं गृह विज्ञान की पढ़ाई महाविद्यालय के कोशी क्षेत्र की प्रारंभिक उपलब्धियों में है। शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की कर्त्तव्यनिष्ठा, सहयोग, नियम अनुशासन से महाविद्यालय की साख बढ़ी है। यह कहना शेष है कि 1973 के पूर्व महाविद्यालय की स्थापना की दिशा में दो-दो बार प्रयत्न हुए जो निष्फल रहे। किन्तु 1973 में संयोजक माननीय हलीम उद्दीन, जिन्हें लोग अररिया के 'गांधी' भी कहा करते थे और स्व० रामतवक्या शर्मा, तत्कालीन संस्थापक अध्यक्ष अनुमण्डल पदाधिकारी के साथ-साथ संस्थापक प्रधानाचार्य डॉ० गंगा नाथ झा के नेतृत्व में बनी समिति ने जो संकल्प का बीड़ा उठाया, उसे टूटने नहीं दिया। सामाजिक व्यवस्था में किसी अच्छे कार्य के पीछे बुटे लोगों का पड़ जाना कोई अनहोनी बात नहीं। रोड़े अटके, समस्याएँ उत्पन्न हुई और महामानव उसे * झेलते चले गए। अररिया उच्च विद्यालय के प्रांगण में प्रातःकालीन पाली में पढ़ाई की व्यवस्था हुई। मात्र सात विद्यार्थी और सात शिक्षकों के साथ महाविद्यालय का 1973-75 सत्र प्रारंभ हुआ। डॉ. गंगा झा प्रधानाचार्य के नेतृत्व में डॉ. सुरेन्द्र कुमार सिंह, मो. इरफान, अफजाल हुसैन सिद्दीकी, विश्वनाथ झा, शशि कांत झा, चन्द्रानन्द झा, शम्स जमाल एवं अनन्त मोहन झा द्वारा वगरिंभ हुआ। तुरंत बाद भूपेश्वर नारायण वर्मा, हसीब उद्दीन, उदित कुमार वर्मा, कमल नारायण यादव और नवल किशोर सिंह भी प्राध्यापक एवं गोपाल प्रसाद लिपिक तथा राम नारायण प्रसाद चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी नियुक्त हुए। तत्कालीन समिति के अध्यक्ष रामतवक्या शर्मा अनुमण्डलाधिकारी के साथ-साथ रघुनाथ राय, भीखमचंद जैन, मोहन लाल अग्रवाल आदि भी उल्लेखनीय नाम है, जिन्होंने रूप में हुआ। 27.03.1981 को अररिया महाविद्यालय अंगीभूत इकाई के रूप में परिवर्तित हो गया। इस बीच कई विषयों के पद-सृजन, नियुक्ति और विकास की गतिविधियों में उनके महत्वपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। अंगीभूतिकरण के समय प्रशासिका समिति के अध्यक्ष हरि प्रसाद सिन्हा, अनुमण्डल पदाधिकारी, मो० यासीन, सचिव, दिनेश झा, अधिवक्ता, विश्वविद्यालय प्रतिनिधि, श्री गंगानाथ झा प्रधानाचार्य थे। बहरहाल, साहित्य का इतिहास और इतिहास में समाविष्ट साहित्य एक कठिन कार्य है और इस सिलसिले में अररिया को रेणुमाटी पर सफलताओं के कई पायदान चढ़ चुके अररिया महाविद्यालय में छात्रों के हितार्थ कई ऐसे कार्य हुए हैं जिसका आकलन सही मायने में वे पिछड़े कमजोर, दलित, महादलित, अपंग और विधवाओं के बच्चे विशेष रूप से कर पाएँगे, जिन्होंने ऊँचाई पायी है। इस महाविद्यालय की एक-एक ईंट में उनके परिश्रम की खुशबू समायी है। आज भी हमने असीम संभावनाओं से युक्त होकर छात्र- छात्राओं को संरक्षित, सुरक्षित और अनुप्राणित करने का प्रण लिया है। हमें अपने वर्तमान पीढ़ी से सहयोग की अपेक्षा है। हमारी ऊर्जा के स्रोत वही हैं। हम अपनी ऊर्जा का प्रयोग प्रगति के लिए, विकास के लिए और नैसर्गिक मूल्यों के लिए करते रहें ताकि समाज में कळणा की रसधारा प्रवाहित होती रहे। बदलता है समाज, बदलती है दुनिया, बदलते हैं लोग। अदलाव- बदलाव की इस आँधी में अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना हमारा कर्तव्य है। जिसके लिए हमारी एकजुटता, प्रकाश में अंधकार को डुबो देने की क्षमता और 'तमसो मा ज्योतिर्गमय का जयघोष हो सृष्टि के चप्पे-चप्पे में पहुँचकर एक नये समाज एक नये संकल्प और एक नये भविष्य को संवर्द्धित करेगा। हर्ष की बात यह है कि 22.2.17 की तिथि से महाविद्यालय को 'नैक' द्वारा भी मान्यता मिल गयी है । भाइट, हम प्यार करना सीखें भीर यही मुगनतन मार्ग है अभ्युदय, विकास भोर प्रीति का। अशोक पाठ (डॉ. अशोक पाठक) प्रधानाचार्य महाविद्यालय,अररिया